Wednesday, May 8, 2024

Knife is as much a weapon as a thought

35 वर्ष पूर्व ईरान के धार्मिक और राजनीतिक नेता अयातुल्लाह ख़ुमैनी ने भारत में जन्मे ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी के ख़िलाफ़ फ़रवरी 1989 में फतवा जारी किया था  जिसमें उन्होंने रुश्दी के बहुचर्चित उपन्यास ‘Satanic Verses’ से रुष्ट होकर मुसलमानों को उनकी हत्या करने का आदेश दिया था और उसी फतवे के तहत अगस्त 2022 को न्यूयॉर्क में एक पब्लिक लेक्चर के दौरान एक 24 वर्षीय युवक ने रुश्दी पर चाकू से कातिलाना हमला किया।  

‘Satanic Verses’ पर उठाई आपत्तिजनक टिप्पणी का अपना इतिहास रहा है, लेकिन अनूठी बात यह है यह सब कुछ युवक के जन्म से एक दशक पहले हुआ था और उसने वारदात को अंजाम देने के समय तक उक्त उपन्यास के शायद दो ही पृष्ठ पढ़े थे। इस हमले में रुश्दी ने कंधे, छाती और चेहरे पर चाकू के 10-15 वार झेले, और अपनी एक आंख गवाई। रुश्दी ने अपनी व्यथा और विचारों को हाल ही में प्रकाशित एक ख़ूबसूरत पुस्तक ‘Knife – Meditations After an Attempted Murder’ में संकलित किया है। यही इस आलेख का संदर्भ है और पाठकों को आगाह कर दूँ कि यह आलेख उपरोक्त पुस्तक की समीक्षा नहीं है।  

इस से पहले की रुश्दी की पुस्तक पर चर्चा करूँ, मुझे लगता है कि यह समझना ज़रूरी है कि ‘मानने’ और ‘जानने’ का अंतर क्या है। ऐसा क्यों हुआ कि उस युवक ने बिना ‘जाने’ ही यह ‘मान’ लिया कि रुश्दी ने पुस्तक में उनके धर्म के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणियाँ की हैं। आज तो खैर हम आसानी से ये कह देते हैं कि Whatsapp काल में बिना जाने सब कुछ माना जा रहा है। लेकिन थोड़ा गहराई से सोचें तो इस पद्धति की शुरुआत तो ‘धर्म’ ने सदियों पहले कर दी थी और सभी धर्मों में बिना जाने हुए मानना एक तरह का धार्मिक ‘रिचुअल’ जैसा बन गया था और आज भी है। रूढ़ियों को भी बिना ‘जाने’ बस ‘मान’ लेना इसी पद्धति का हिस्सा थी। रुश्दी पर हमला करने वाले उस युवक ने बरसों से समाज द्वारा ‘मानी’ और ‘संजोयी’ घृणा को केवल अंजाम दिया। दोस्तोवॉसकी के उत्कृष्ट उपन्यास ‘Crime and Punishment’ का नायक भी यही मानता रहा कि कुछ अपराध तो न्यायोचित होते हैं। यह और बात है कि क़त्ल के बाद नायक ताउम्र भ्रम, व्यामोह, और घृणा का शिकार रहा। जिस विचार या भावना की स्वयं अनुभूति न हो, उसे मानना खुद में किसी अपराध से कम नहीं।

जिस हॉल में सलमान रूशदी पर हमला हुआ, उस हाल में उपस्थित दर्शकों ने बाद में जो प्रश्न उठाया वो स्वयं रुश्दी ने भी खुद से पूछा है कि ऐसा क्या हुआ कि उस हमलावर को चाकू लेकर अपनी तरफ आते हुए देख भी लिया लेकिन फिर भी रुश्दी आत्मरक्षा में कुछ कर न पाये? रुश्दी कहते हैं कि हिंसा में वास्तविकता को नाश करने की वो तीव्र शक्ति है जिसमें  तर्कसंगत विचार की कोई जगह ही नहीं रहती। भय और चिंता के वातावरण में सही सोच या विवेक कहीं गायब हो जाता है।

उस हमले में भी यही हुआ था। जब तक होश संभलता ‘चाकू’ ने अपने धर्म का पालन कर दिया था। गज़ब है जो (चाकू) घृणा को अंजाम देता है वो घृणा का पात्र नहीं बनता, क्योंकि यही चाकू किसी चिकित्सक के हाथ होता तो ‘जानदेवा’ होता न कि ‘जानलेवा’, क्योंकि चिकित्सक की मन:स्थिति जीवनदान की होती है। मन-वचन-कर्म के तारतम्य से ही विचार कर्म में परिवर्तित होता है और जब मन घृणा से ओतप्रोत हो तो कर्म कैसा होगा, इसकी तो मात्र कल्पना ही की जा सकती है। वो युवक मन-वचन-कर्म के चक्रव्यूह से खुद को निकाल ही नहीं पाया। ‘मानना’ इस कदर ‘जानने’ पर हावी रहा कि चाकू ने वो ही किया जो उसे बताया गया।

इस हिंसक वारदात में एक आंख गंवाने के बाद रुश्दी को द्विचक्षु समाज को पुनः जानने-समझने का मौका मिला और उन्हें ‘Knife’ को एक हथियार से ज़्यादा एक विचार के रूप में देखने और दिखाने का आत्मबोध हुआ। कई मायनों में रुश्दी ने चाकू की आत्मकथा लिख डाली है – चाकू उतना ही ‘एक हथियार’ है जितना कि ‘एक विचार’।  चाकू की ‘शरीर से घनिष्टता’ ही उसके ‘अपने’ होने का अहसास दिलाती है। चाकू खुद में तो एक धातु का टुकड़ा भर ही है अगर उस में ‘धार’ न हो। इस हादसे के बाद रुश्दी को यह एहसास हुआ कि वह स्वयं भी साहित्य को एक तेज़ धार वाले चाकू की तरह ही तो इस्तेमाल कर रहे थे। इस दुर्घटना से ‘धार’ और ज़्यादा तेज़ और सार्थक ही होनी चाहिए,  इन संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।

चाकू केक भी काटता है और सब्ज़ी भी, बोतल भी खोलता है और शरीर भी।  9/11 ने तो हवाई जहाज़ को एक चाकू की तरह इस्तेमाल किया ‘twin towers’ को काटने के लिए। धार तेज़ हो तो कोई भी चीज़ चाकू बन सकती है लेकिन चाकू के होने का अहसास तब होता है जब यह वो काटता है जो हम अक्सर कटा हुआ देखना नहीं चाहते। भाषा भी तो एक चाकू है जो बिना कुछ काटे वैचारिक काट-छांट कर सकती है। चाकू एक कष्टदायक अनुभव भी है जो जीवन को नये अनुभवों के करीब लाता है। चाकू में जीवन लेने की शक्ति तो है ही, जीवन देने की अद्भुत ताकत भी है जैसा कि हम चिकित्सक के हाथ के चाकू की चर्चा ऊपर कर चुके हैं और या फिर आप किसान की दराँती के चाकू को भी उसी श्रेणी में रख सकते हैं जो हमारी क्षुधा पूर्ति के लिए फसलें काटता है।    

एक बात तो तय है कि चाकू ने सलमान रुश्दी को एक नई अस्मिता दी है जिसमें चाकू केन्द्रीय भूमिका में है और उन्हें अब इसी नई अस्मिता के साथ जीना होगा।   ‘Knife’ एक चुनौती तो रहा ही है लेकिन उनके पास एक मौका भी है अपने को दोहराये बिना सार्थक बनाये रखने का! यह रुश्दी जैसे प्रतिभाशाली लेखक के ही बस की बात थी कि उन्होंने अपने पर हुए इस दुर्भाग्यपूर्ण जानलेवा हमले का भी सकारात्मक इस्तेमाल किया और वर्तमान समाज में विद्यमान प्रवृत्तियों पर एक गहन दृष्टि डाली जिसे आप समाजशास्त्रीय या राजनीतिक दृष्टि भी कह सकते हैं और मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक भी! 

First published in www.RaagDelhi.com, uploaded on May 8, 2024 

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